- बड़े अफसर सवालों के घेरे में — सरकार एक्शन लेगी या चुप्पी साधेगी?
- “कूड़े के ढेर के पास की 14 करोड़ की ज़मीन, 54 करोड़ में खरीदी गई!”
सत्यजीत पंवार ( देहरादून )
हरिद्वार नगर निगम का यह डील अब बन चुका है एक हाई-प्रोफाइल घोटाला — जिसकी जांच रिपोर्ट ने शासन तक हलचल मचा दी है।
सवाल ये है:
👉 क्या ये सिर्फ लापरवाही थी या सुनियोजित बंदरबांट?
🔥 किन-किन पर लटकी है कार्रवाई की तलवार?
आईएएस रणवीर सिंह चौहान की रिपोर्ट में तीन बड़े नामों को प्रथम दृष्टया दोषी ठहराया गया है:
• 🧑💼 डीएम हरिद्वार – कर्मेन्द्र सिंह
• 🧑💼 पूर्व नगर आयुक्त – वरुण चौधरी (वर्तमान में अपर सचिव स्वास्थ्य)
• 🧑💼 तत्कालीन एसडीएम – अजयवीर सिंह
तीनों की भूमिका संदेह के घेरे में है।
अब सबकी निगाहें टिकी हैं मुख्यमंत्री पर — क्या होगी कार्रवाई?
📍 पूरा मामला संक्षेप में
• साल 2024 में नगर निगम ने हरिद्वार के सराय गांव में 33 बीघा भूमि खरीदी।
• ज़मीन की असली कीमत 14–15 करोड़ आँकी गई थी।
• लेकिन लैंड यूज बदला गया और कीमत उछलकर 54 करोड़ हो गई!
• सिर्फ 20 दिन में बदली गई ज़मीन की किस्म, फिर एग्रीमेंट और रजिस्ट्री!
📌 सवाल: इतनी जल्दबाज़ी किस लिए?
🧾 जांच रिपोर्ट में क्या सामने आया?
• ✅ भूमि चयन का कोई औचित्य नहीं था
• ✅ नियमों को दरकिनार कर रजिस्ट्री की गई
• ✅ सर्किल रेट का दुरुपयोग
• ✅ लैंड यूज में खेल
• ✅ सशर्त अनुमति का उल्लंघन
• ✅ किसी परियोजना का ज़िक्र तक नहीं
👉 रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सरकारी खजाने को इस डील से करीब 40 करोड़ का नुकसान हुआ।
⚠️ अब तक क्या एक्शन हुआ?
✔️ चार अफसर सस्पेंड:
• रवीन्द्र दयाल (सहायक नगर आयुक्त)
• आनंद मिश्रवाण (प्रभारी अधिशासी अभियंता)
• लक्ष्मीकांत भट्ट (राजस्व अधीक्षक)
• दिनेश कांडपाल (अवर अभियंता)
✔️ लिपिक वेदपाल की सेवा समाप्त
✔️ वरिष्ठ वित्त अधिकारी से जवाब-तलब
✔️ भूमि बेचने वाले किसान के खाते फ्रीज़
🧠 कौन है मास्टरमाइंड?
फाइलें “तेज़ी से दौड़ने” लगीं —
👉 किसके इशारे पर?
👉 बिना परियोजना के ज़मीन क्यों खरीदी गई?
👉 लैंड यूज इतनी जल्दी कैसे बदला गया?
क्या कोई “अदृश्य हाथ” इस खेल का असली सूत्रधार है?
सत्ता के गलियारों में चर्चाएं गर्म हैं, लेकिन नाम अब तक पर्दे के पीछे हैं।
🔍 अब आगे क्या?
👉 क्या धामी सरकार इन बड़े नामों पर कड़ा एक्शन लेगी?
👉 या फिर ये मामला भी ‘इनक्वायरी फाइल’ में कैद होकर रह जाएगा?
⏳ जवाब वक़्त देगा, लेकिन फिलहाल जनता पूछ रही है —
“40 करोड़ का फ़र्क किसकी जेब में गया?”
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