Uttarakhand News : सील हुए मदरसों के बच्चों का भविष्य क्या होगा?

सरकारी स्कूलों में दाखिले की तैयारी, शिक्षा विभाग ने दिए निर्देश

देहरादून। उत्तराखंड में अवैध रूप से संचालित मदरसों के खिलाफ कार्रवाई तेज हो गई है। बीते एक महीने में प्रदेशभर में 136 मदरसों को सील किया जा चुका है। इनमें सबसे अधिक उधमसिंह नगर जिले में 64, देहरादून में 44, हरिद्वार में 26 और पौड़ी गढ़वाल में 2 मदरसे शामिल हैं।

इस कार्रवाई से जहां अवैध मदरसों के संचालन पर रोक लगी है, वहीं इन मदरसों में पढ़ने वाले सैकड़ों बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ गई है। हालांकि, शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने स्पष्ट किया है कि बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं होगी।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में दो तरह के मदरसे संचालित हो रहे हैं—पहले, जो मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं और दूसरे, जो बिना पंजीकरण के चल रहे थे। अवैध मदरसों को सील किए जाने के बाद इन बच्चों को दो विकल्प दिए जा रहे हैं—या तो वे किसी मान्यता प्राप्त मदरसे में दाखिला लें या फिर सरकारी स्कूलों में निशुल्क शिक्षा प्राप्त करें।

बच्चों की पढ़ाई नहीं होगी बाधित

शिक्षा महानिदेशक ने कहा कि राइट टू एजुकेशन (RTE) के तहत सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार है। ऐसे में शिक्षा विभाग यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे। जल्द ही नए शैक्षणिक सत्र की प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने वाली है। इसके तहत शिक्षा विभाग घर-घर जाकर अभिभावकों से संपर्क करेगा और बच्चों के सरकारी स्कूलों में दाखिले की व्यवस्था करेगा।

उन्होंने बताया कि अकेले देहरादून में सील किए गए मदरसों के करीब एक हजार बच्चे प्रभावित हुए हैं। अन्य जिलों में भी ऐसे बच्चों की संख्या एकत्रित की जा रही है ताकि सभी के लिए उचित वैकल्पिक शिक्षा की व्यवस्था की जा सके।

मदरसों की फंडिंग की होगी जांच

गढ़वाल आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने कहा कि यदि कोई मदरसा सरकार के नियमों के अनुसार पंजीकृत है, तो उसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन जो मदरसे अवैध रूप से संचालित हो रहे थे, उन पर कार्रवाई जारी रहेगी। इसके साथ ही, अवैध मदरसों की फंडिंग के स्रोतों की भी जांच की जाएगी।

सरकार के इस कदम से जहां शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की कोशिश हो रही है, वहीं अवैध रूप से संचालित मदरसों में पढ़ रहे बच्चों के भविष्य को लेकर भी खास ध्यान दिया जा रहा है। अब देखना होगा कि यह योजना कितनी कारगर साबित होती है और प्रभावित बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से कितनी जल्दी जोड़ा जा सकता है।

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