उत्तराखण्ड

1 : 900 डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात के साथ डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से आगे निकला भारत : भुवनेश्‍वर कलिता

नई दिल्ली, 18 मार्च (आईएएनएस)। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के एक अंग एसोचैम नेशनल सीएसआर काउंसिल के बैनर तले सोमवार को नई दिल्ली में ‘इलनेस टू वेलनेस’ पर जागरूकता शिखर सम्मेलन का दूसरा संस्करण शुरू हुआ।

राज्यसभा सांसद भुवनेश्‍वर कलिता स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मामले की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष भी हैं। उन्‍होंने मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा, “आज भारत ऐसी परिवर्तनकारी यात्रा कर रहा है, जो ‘इलनेस से वेलनेस’ की ओर देखती है, वह भी बिल्कुल नए चश्मे से।”

कलिता ने कहा, “स्वास्थ्य और स्वच्छता के महत्व को समझने के बाद, आइए हम इस क्षेत्र में भारत के उल्लेखनीय विकास को स्वीकार करें। डब्ल्यूएचओ 1 : 1000 के डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात की सिफारिश करता है, हमने 1 : 900 का अनुपात हासिल कर लिया है। स्वास्थ्य और स्वच्छता में निवेश करना न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि यह एक आर्थिक जरूरत भी है।”

“महज जुमलेबाजी से परे, स्वास्थ्य और स्वच्छता वे स्तंभ हैं, जिन पर समृद्ध समाज का निर्माण होता है। यह यात्रा कठिन होते हुए भी प्रेरणादायक रही है। संक्रामक रोगों से लड़ने से लेकर निवारक स्वास्थ्य देखभाल को अपनाने तक देश ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। पिछले दशक में हमने मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर में कमी देखी है।

“ये उपलब्धियां मजबूत स्वास्थ्य देखभाल पहल की प्रभावशीलता और स्वच्छता प्रथाओं को प्राथमिकता देने के महत्व को रेखांकित करती हैं। सरकार की विभिन्न पहलों और कार्यक्रमों ने हमारे समाज को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाया है।”

कलिता ने कहा, “जब हम सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए प्रयास करते हैं, समुदायों को उनकी भलाई की रक्षा के लिए ज्ञान और संसाधनों के साथ सशक्त बनाना अनिवार्य है। सरकार ने मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि की है और अब हमारे पास हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज होगा। ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी है, यह कहना अतीत की बात हो जाएगी।”

एसोचैम नेशनल सीएसआर काउंसिल के अध्यक्ष, अनिल राजपूत ने स्वागत भाषण में कहा, “‘इलनेस टू वेलनेस’ पहल 2014 में इस विश्‍वास के साथ शुरू की गई थी कि हमारे पास एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान है, जिसमें ज्‍यादातर बीमारियां दूर हो सकेंगी। निवारक स्वास्थ्य देखभाल जागरूकता द्वारा इन्‍हें या तो खत्‍म कर दिया गया या इन पर काबू पा लिया गया।”

उन्‍होंने कहा, “हम सशक्तीकरण, शिक्षा, सहयोग और स्थायी प्रभाव पर ध्यान देने के साथ सभी के लिए स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता से प्रेरित हैं। हमने वर्षों से शिविरों और जागरूकता अभियानों के आयोजन से लेकर आउटरीच और प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया है। गंभीर बीमारियों के उपचार और प्रेरणा प्रदान करने के व्यापक उद्देश्य के साथ हम प्रमुख स्वास्थ्य विकास पर नियमित रूप से वेबिनार आयोजित करते हैं।”

‘इलनेस टू वेलनेस’ अभियान इंटर-स्कूल ड्राइंग प्रतियोगिता जैसी पहल के जरिए युवा दिमाग तक अपनी पहुंच बढ़ाता है, जिसमें शिखर सम्मेलन में प्रदर्शित नवीनतम प्रतियोगिता की कलाकृतियां शामिल हैं।

प्रतियोगिता में 57 स्कूलों और 10,000 छात्रों को शामिल करते हुए स्वास्थ्य, स्वच्छता और वायु प्रदूषण सहित महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा दिया गया।

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के चेयरमैन अशोक सेठ ने मुख्य भाषण देते हुए कहा, “तंदुरुस्ती मन, आत्मा व शरीर की एक स्थिति है और बीमारी का मतलब सामाजिक, शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक कारकों की कमी है। विश्‍व के लिए नए भारत को स्वास्थ्य कल्याण की ओर भी ले जाना होगा।”

उन्‍होंने कहा, “युवा और महिलाएं हमारे देश का वर्तमान और भविष्य हैं। हमें वेलनेस और उससे आगे के लिए सभी प्रयासों को संयोजित करना होगा। 20वीं शताब्दी मानव जाति द्वारा जीते गए अब तक के सबसे वैज्ञानिक 100 वर्ष थे। एक सूक्ष्म जीव और कोविड महामारी ने मानव जाति को उसकी शक्ति की सीमाएं दिखाईं।”

“एक साथ काम करने, मानसिक स्वास्थ्य और सशक्तिकरण के बारे में समझ आशा की किरण है, जो हमें अधिक तत्परता के साथ वेलनेस के बारे में बात करने के लिए प्रेरित करती है। विज्ञान ने हमें 20वीं सदी में रहने के लिए प्रेरित किया है और अब हमें 21वीं सदी में जाने के लिए विज्ञान को आध्यात्मिकता के साथ जोड़ना होगा। विज्ञान ने हमें पृथ्वी पर रहने लायक बनाया है, तो आध्यात्मिकता ने हमें दुनिया में रहने लायक बनाया है।”

गोविंद बल्लभ पंत इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रिसर्च, एनसीटी दिल्ली सरकार के मेडिकल डायरेक्टर अनिल अग्रवाल ने अपने संबोधन में कहा, “स्वस्थ प्रथाओं को अपनाने के लिए सार्वजनिक जागरूकता एक महत्वपूर्ण शर्त है। यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सही जानकारी का प्रसार किया जाए।”

उन्‍होंने कहा, “बीमारी का पता जल्‍द लगाना उपचार की आधारशिला है और शीघ्र चिकित्सा हस्तक्षेप की सलाह दी जाती है। सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने में साइलेंट किलर्स और कमजोर समूहों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। स्कूली बच्चों तक पहुंचना एक अच्छा तरीका है, जितनी कम उम्र में आप शुरुआत करेंगे, उतना ही बेहतर होगा और जागरूकता आएगी। स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों को बुनियादी जीवन-रक्षक कौशल प्रदान करना अचानक मृत्यु से निपटने में बहुत कारगर होगा।”

–आईएएनएस

एसजीके/एसकेपी

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