
देहरादून । आज से करीब साढ़े चार साल पहले, 2022 के उत्तराखंड विधान सभा चुनाव से ठीक पहले जब तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को हटा कर भाजपा हाईकमान ने एक अनजान से युवा पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की बागडोर सौंपी तो सत्ताधारी भाजपा के साथ ही विपक्षी कांग्रेस के नेता भी चौंक गए थे।
किसी को भी तब उम्मीद नहीं थी कि भाजपा हाईकमान एक ‘कम चर्चित’ नेता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है। मगर आज करीब साढ़े चार साल बाद वही ‘कम चर्चित’ नेता देश के सबसे चर्चित, लोकप्रिय और प्रभावशाली राजनेताओं की सूची में न केवल शामिल हो चुके हैं, बल्कि उत्तराखंड में भाजपा के सबसे ज्यादा वक्त तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकार्ड भी बना चुके हैं।
वह युवा मुख्यमंत्री, पुष्कर सिंह धामी आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे प्रिय और करीबी नेताओं की सूची में शामिल होकर आज उत्तराखंड की पहचान बन चुके हैं।
चार साल का कार्यकाल पूरा करने के साथ धामी ऐसे मुख्यमंत्री बन गए हैं जिन्होंने कार्यकाल के मामले में भगत सिंह कोश्यारी, भवनचंद खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक,त्रिवेंद्र सिंह रावत,तीरथ सिंह रावत, विजय बहुगुणा, हरीश रावत सभी को पीछे छोड़ दिया है।
उनसे ज्यादा वक्त तक मुख्यमंत्री रहने की सूची में अब केवल का कांग्रेसी दिग्गज नारायण दत्त तिवारी का ही नाम है।
उत्तराखंड की राजनीति में एक तरह से अपरिहार्य सियासी परंपरा बन चुकी राजनीतिक अस्थिरता और मुख्यमंत्री बदलने की परिपाटी को तोड़ते हुए सीएम पुष्कर सिंह धामी ने नया इतिहास रच दिया है।
जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से अब तक पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड की राजनीति में इतनी बड़ी लकीर खींच दी है जिसे पार कर पाना भविष्य के किसी भी मुख्यमंत्री के लिए असंभव होगा। धामी ने स्थायित्व की दिशा में प्रदेश को एक नई राह दिखाई है।
साल 2021 में जब अचानक तीरथ सिंह रावत की जगह युवा नेता धामी को कमान सौंपी गई, तब कई राजनीतिक विश्लेषकों के साथ ही पार्टी के भीतर से भी उनकी काबिलियत को लेकर कई सवाल उठे थे।
लेकिन बीते चार वर्षों में धामी ने संगठन और जनता दोनों का विश्वास जीत लिया है। आज पार्टी के वरिष्ठ नेता भी स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि आगामी 2027 विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का चेहरा पुष्कर सिंह धामी ही होंगे।
हाईकमान का जीता भरोसा : चुनाव हारकर भी बनाए गए सीएम
2022 के विधानसभा चुनाव में खटीमा सीट से हारने के बावजूद पार्टी ने धामी पर दोबारा भरोसा जताया और मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी कराई। इसके बाद धामी ने रिकार्डतोड़ मतों से चंपावत उपचुनाव जीतकर खुद को साबित किया और नेतृत्व में निरंतरता कायम रखी।
एक से बढ़ कर एक फैसले
धामी सरकार ने बीते वर्षों में कई ऐतिहासिक और साहसिक फैसले लिए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने की दिशा में कदम।
महिलाओं को तीन मुफ्त गैस सिलेंडर, सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण, सहकारी समितियों में 33% आरक्षण, ‘लखपति दीदी’ योजना जैसी योजनाओं ने महिलाओं को सशक्त किया।
पूर्व सैनिकों और शहीद परिवारों के लिए अनुग्रह राशि 10 लाख से बढ़ाकर 50 लाख करना, ‘उपनल’ कर्मियों के लिए बीमा और सरकारी समकक्ष सुविधाएं देना, युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में आवेदन की समय सीमा में लचीलापन जैसे निर्णयों से सामाजिक न्याय को मजबूती मिली।
पलायन पर लगाम की कोशिश
पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए ‘एप्पल मिशन’, ‘कीवी मिशन’ और ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ जैसे प्रोजेक्ट्स लागू किए गए हैं, जो स्थानीय उत्पादों को बाज़ार दिलाने की पहल है। इसके साथ ही नकल विरोधी कानून, भू-कानून और लव-जिहाद जैसे मामलों में सख्त रुख अपनाकर कानून व्यवस्था को मजबूत किया गया है।
राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों पर प्रदेश को दिलाई पहचान
राष्ट्रीय खेलों और G-20 बैठकों की मेज़बानी, नीति आयोग के एसडीजी इंडेक्स में शीर्ष रैंकिंग, और ग्रॉस एनवायर्नमेंटल प्रोडक्ट (GEP) जैसे नवाचारों ने उत्तराखंड को नीतिगत रूप से एक सशक्त राज्य के रूप में पेश किया है।
जमीनी नेतृत्व की मिसाल
पुष्कर सिंह धामी अक्सर ज़मीनी स्तर पर पहुंचकर योजनाओं की निगरानी करते हैं। सड़क, रेल और हवाई संपर्क के क्षेत्रों में हुए कार्य, 23 हजार से अधिक सरकारी पदों पर सीधी भर्तियाँ, मानसखंड मंदिर माला मिशन, और शीतकालीन पर्यटन को लेकर किए गए प्रयास उनकी प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं।
चार साल पहले युवा चेहरे के रूप में उभरे और अपने समर्थकों के बीच ‘धाकड़ धामी’ के नाम से पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज उत्तराखंड की राजनीति के सबसे मजबूत स्तंभ बन चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह मुख्यमंत्री धामी की लगातार तारीफ करते रहे हैं, जिससे साफ होता है कि उत्तराखंड में उनके सामने अभी कोई राजनीतिक चुनौती नहीं है।