
- उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण न देने पर सरकार से मांगा जवाब, 2 जुलाई तक स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश
नैनीताल। उत्तराखंड में राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में मिलने वाले 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह 2 जुलाई तक अदालत को इस विषय पर पूरी स्थिति से अवगत कराए।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता भुवन सिंह और अन्य की ओर से अदालत को बताया गया कि सरकार द्वारा बनाए गए कानून के बावजूद राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10% क्षैतिज आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है। यह न सिर्फ सरकार की अपनी नियमावली का उल्लंघन है, बल्कि आंदोलनकारियों के साथ अन्याय भी है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी उल्लेख किया कि वर्ष 2017 में हाईकोर्ट ने सरकार की पुरानी आरक्षण नीति को रद्द कर दिया था, जिसके बाद सरकार ने नया कानून बनाकर आरक्षण देने की प्रक्रिया शुरू की। हालांकि, धरातल पर इसका समुचित क्रियान्वयन अब तक नहीं हो सका है।
राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को पेंशन दी जा रही है, और मृत आंदोलनकारियों के परिजनों को आश्रित कोटे के तहत लाभ देने की मंशा भी है। लेकिन इसके लिए स्पष्ट रूप से पात्रों की पहचान जरूरी है, जिसे लेकर कार्यवाही जारी है।
सरकार ने कोर्ट से कुछ समय और देने की मांग की, ताकि पूरी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित रूप से पूरा किया जा सके। इस पर अदालत ने दो टूक कहा कि सरकार विस्तृत जवाब के साथ 2 जुलाई तक स्थिति स्पष्ट करे।
मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई को होगी।
मुख्य बिंदु:
- राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में 10% क्षैतिज आरक्षण देने की मांग
- हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत स्थिति रिपोर्ट मांगी
- 2017 में पहले आरक्षण नीति हो चुकी है निरस्त
- सरकार पेंशन दे रही, लेकिन आरक्षण पर अब तक स्पष्ट क्रियान्वयन नहीं
- अगली सुनवाई 2 जुलाई को