- सरकारी ज़मीन आवंटन में गड़बड़ी का मामला, भुज कोर्ट का फैसला
गुजरात के कच्छ जिले की भुज कोर्ट ने शनिवार को एक दशक पुराने सरकारी ज़मीन आवंटन घोटाले में पूर्व IAS अधिकारी प्रदीप शर्मा समेत तीन अन्य सरकारी अधिकारियों को पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला साल 2003-04 में कच्छ जिले की मुंद्रा तहसील में सरकारी ज़मीन एक निजी कंपनी को बेहद कम दाम पर आवंटित करने से जुड़ा है।
अदालत ने शर्मा के अलावा उस समय के टाउन प्लानर नतू देसाई, डिप्टी मामलतदार नरेंद्र प्रजापति और रेजिडेंट एडिशनल कलेक्टर अजीतसिंह ज़ाला को भी दोषी ठहराया और प्रत्येक पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया।
पहले से जेल में हैं शर्मा, नई सजा 2030 के बाद लागू होगी
प्रदीप शर्मा को इसी साल जनवरी में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में पहले ही सजा मिल चुकी है, जो साल 2030 तक चलेगी। भुज कोर्ट ने आदेश दिया है कि यह नई पांच साल की सजा उस सजा के पूरा होने के बाद ही लागू होगी। वहीं अन्य तीन दोषियों की सजा शनिवार दोपहर से शुरू हो गई है।
क्या है मामला?
कोर्ट ने पाया कि 2004 में Saw Pipes Pvt. Ltd. नामक निजी कंपनी को समाघोगा गांव में औद्योगिक इस्तेमाल के लिए सरकारी ज़मीन देने की प्रक्रिया में गड़बड़ी की गई। आरोपी अफसरों ने डिस्ट्रीक्ट लैंड वैल्यूएशन कमिटी में मिलीभगत से ज़मीन की कीमत ₹6 प्रति वर्ग मीटर तय की, जबकि वे ऐसा करने के अधिकृत नहीं थे।
इस फैसले में कहा गया कि शर्मा ने कलेक्टर रहते हुए बिना राज्य सरकार की अनुमति के ज़मीन आवंटित की, और उन आदेशों की कॉपी सरकार को नहीं भेजी गई। बाद में जब राज्य सरकार को इस अनियमितता की जानकारी मिली, तो कंपनी से बाजार दर पर कीमत वसूल की गई।
विशेष लोक अभियोजक बोले — सजा में ‘concurrent’ का न हो लाभ
विशेष लोक अभियोजक एचबी जडेजा ने बताया कि कोर्ट से आग्रह किया गया था कि प्रदीप शर्मा की यह सजा उनकी पिछली सजा के साथ-साथ (concurrent) न चले, ताकि सजा का उद्देश्य बना रहे। अदालत ने इसे स्वीकारते हुए आदेश दिया कि शर्मा की यह सजा 2030 के बाद ही शुरू होगी।
यह केस 2011 में राजकोट CID क्राइम पुलिस स्टेशन में IPC की धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात), 120B (साजिश) और 217 (सरकारी पद का दुरुपयोग) के तहत दर्ज किया गया था।