92वीं जयंती पर याद किए गए परम श्रद्धेय संत-सैनिक लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह जी

  • देहरादून स्थित तपस्थली पर देशभर से जुटे श्रद्धालु, दिव्य जीवन को किया नमन

देहरादून | 1 अगस्त 2025

आज देहरादून स्थित तपस्थली और समाधि स्थल पर परम श्रद्धेय संत-सैनिक लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह जी की 92वीं जयंती के पावन अवसर पर श्रद्धा और सम्मान का अद्वितीय संगम देखने को मिला। उत्तराखंड ही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों से आए अनेक श्रद्धालु, सैन्य अधिकारी और उनके प्रशंसकों ने इस अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

कार्यक्रम की शुरुआत पूजा और भजन संकीर्तन से हुई, जिसके पश्चात जनरल हनुत सिंह के दिव्य जीवन और सैन्य योगदान पर आधारित एक विशेष प्रस्तुति दी गई।

युद्ध वीरों द्वारा भेजे गए रिकॉर्डेड श्रद्धांजलि संदेशों को भी सार्वजनिक रूप से सुनाया गया, जिनमें उनके नेतृत्व, करुणा और सैन्य अनुशासन की मिसालों को भावुकता से याद किया गया।

हनुत सिंह जी: संत और सैनिक का दुर्लभ संगम

राजस्थान में हरियाली अमावस्या के दिन 1933 में जन्मे लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह को न सिर्फ एक उत्कृष्ट बख्तरबंद रणनीतिकार, बल्कि एक सच्चे संत के रूप में भी स्मरण किया जाता है। उनका सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के उच्च उद्देश्य और मातृभूमि की सेवा के प्रति समर्पित रहा।

1971 के भारत-पाक युद्ध में “बसंतर की लड़ाई” के दौरान उनकी कमान में रही ‘पूना हॉर्स रेजिमेंट’ ने पाकिस्तान की 8वीं बख्तरबंद ब्रिगेड को निर्णायक रूप से परास्त किया था। इस अद्वितीय वीरता के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

उनकी शांत नेतृत्वशैली, साहसिक उपस्थिति और कर्मनिष्ठा ने उन्हें आधुनिक भारत के सबसे सम्मानित सैन्य नेताओं में शामिल किया। उन्हें लेकर एक टिप्पणी प्रख्यात है:

“शत्रु की गोलाबारी के बीच, लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह संकटग्रस्त मोर्चों पर निडरता से पहुंचते रहे — उनका धैर्य और साहस सैनिकों के लिए प्रेरणा बना।”

आज भी प्रेरणा का स्रोत

आज उनके जीवन से जुड़ी स्मृतियां न केवल सैन्य जगत के लिए, बल्कि आध्यात्मिक जगत के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। कार्यक्रम में मौजूद अधिकारियों और श्रद्धालुओं ने एक स्वर में कहा — हनुत सिंह जी जैसे संत-सैनिक युगों में जन्म लेते हैं।

उनकी जयंती पर आयोजित यह आयोजन न केवल उन्हें श्रद्धांजलि थी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को सेवा, समर्पण और साधना का संदेश भी।

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