1971 के युद्ध के वीर सैनिक गोपाल जंग को अंतिम यात्रा में भी लड़ना पड़ा ‘युद्ध’, झूलापुल के लिए दशकों से मांग जारी
1971 का युद्ध लड़े वीर सैनिक गोपाल जंग बस्नेत को मरने के बाद अपनी अंतिम यात्रा में भी एक ‘युद्ध’ लड़ना पड़ा। गाँव से शमशान तक जाने के लिए नदी पार करनी थी और पुल था नहीं, पार्थिव शरीर को ट्रॉली से उफानाई गौला नदी पार कराई तब जाकर चार कंधे नसीब हुए, अंतिम संस्कार में विलंब हुआ अलग।
1971 का युद्ध लड़े वीर सैनिक गोपाल जंग बस्नेत को मरने के बाद अपनी अंतिम यात्रा में भी एक ‘युद्ध’ लड़ना पड़ा।
गाँव से शमशान तक जाने के लिए नदी पार करनी थी और पुल था नहीं, पार्थिव शरीर को ट्रॉली से उफानाई गौला नदी पार कराई तब जाकर चार कंधे नसीब हुए, अंतिम संस्कार में विलंब हुआ अलग।… pic.twitter.com/15RKi9nDbv— Ajit Singh Rathi (@AjitSinghRathi) September 13, 2024
जब इस वीर ने युद्ध में दुश्मन के छक्के छुड़ाए होंगे तब सोचा नहीं होगा कि मूलभूत सुविधाओ का अभाव मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ेगा। यह वीर सैनिक हल्द्वानी के रानीबाग के दानीजाला में रहते थे, लंबी बीमारी से निधन हो गया।
दो बेटे सेना में हैं। दशकों से झूलापुल की माँग है, लेकिन नहीं मिला। इस गाँव के लोगों ने ब्रिटिश आर्मी से लेकर अब तक भारतीय सेना में देश की सेवा की, आज भी दर्जन भर से अधिक युवा देश की सेवा के लिए सेना में सेवाएं दे रहे हैं।
फिर भी एक अदद झूला पुल नहीं मिला। जबकि ये हल्द्वानी शहर से लगा इलाक़ा है कोई रिमोट नहीं है। और उत्तराखण्ड में विकास की गंगा बह रही है!!