
- अधोमानक दवाओं पर जीरो टॉलरेंस, फार्मा उद्योग को मिलेगा विश्व स्तरीय समर्थन
देहरादून | ब्यूरो रिपोर्ट
उत्तराखण्ड को भारत के फार्मा मानचित्र पर अग्रणी राज्य बनाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण पहल करते हुए, सोमवार को खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन मुख्यालय, देहरादून में एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक आयोजित की गई। यह बैठक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के निर्देशों पर बुलाई गई थी, जिसकी अध्यक्षता राज्य औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी ने की।
बैठक में प्रदेश की 30 से अधिक दवा निर्माता कंपनियों के प्रतिनिधियों और औषधि विनिर्माण एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने भाग लिया। बैठक का मुख्य फोकस अधोमानक औषधियों के हालिया मामलों की समीक्षा, उद्योग की प्रतिष्ठा की रक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण की दिशा में ठोस कदमों पर चर्चा रहा।
उद्योग की चिंता: बिना पुष्टि के ड्रग अलर्ट से बिगड़ रही छवि
बैठक में दवा निर्माताओं ने चिंता जताई कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा कई बार बिना पूरी जांच के जारी किए गए ड्रग अलर्ट से उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंच रही है।
एक उदाहरण में कूपर फार्मा के Buprenorphine Injection को अधोमानक घोषित किया गया, जबकि बाद की जांच में सामने आया कि दवा उत्तराखण्ड में बनी ही नहीं थी, बल्कि बिहार में अवैध रूप से तैयार की गई थी।
उद्योग प्रतिनिधियों ने मांग की कि जब तक ड्रग नमूनों की जांच प्रक्रिया पूरी न हो जाए, तब तक सार्वजनिक पोर्टलों पर अलर्ट जारी करने से बचा जाए। साथ ही, उन्होंने 18(A) और 25(3) धाराओं के तहत उन्हें मिलने वाले वैधानिक अधिकारों को समयबद्ध और प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की।
राज्य औषधि नियंत्रक की दो टूक: गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं
राज्य औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी ने सभी कंपनियों को स्पष्ट संदेश दिया कि राज्य सरकार औद्योगिक विकास के साथ है, लेकिन औषधियों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होगा।
उन्होंने कंपनियों से GMP (Good Manufacturing Practices) का कड़ाई से पालन करने, प्रत्येक उत्पादन चरण का सटीक रिकॉर्ड बनाए रखने और औषधियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने को कहा।
स्वास्थ्य सचिव का स्पष्ट रुख: उत्तराखण्ड बनेगा फार्मा हब
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार का उद्देश्य केवल निवेश आकर्षित करना नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड को एक विश्व स्तरीय फार्मा हब बनाना है।
उन्होंने जानकारी दी कि राज्य में वर्तमान में 285 फार्मा यूनिट्स हैं, जिनमें से 242 WHO प्रमाणित हैं। यहां कुल राष्ट्रीय दवा उत्पादन का लगभग 20% हिस्सा तैयार किया जा रहा है, जो देश-विदेश में निर्यात भी हो रहा है।
उन्होंने हाल ही में देहरादून में स्थापित उच्च-प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला का उल्लेख किया, जहां अब दवाओं के साथ-साथ मेडिकल उपकरण और कॉस्मेटिक सैंपल्स की भी जांच हो सकेगी। जल्द ही इस लैब को NABL मान्यता मिलने की उम्मीद है, जिससे यहां की रिपोर्ट्स को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त होगी।
फार्मा कंपनियों ने जताया भरोसा
दवा निर्माता कंपनियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रावत के प्रति आभार जताते हुए कहा कि राज्य की उद्योग-समर्थक और पारदर्शी नीतियों के कारण उत्तराखण्ड तेजी से निवेश का पसंदीदा गंतव्य बन रहा है।
उद्योग का विश्वास है कि अगर यही नीति और पारदर्शिता बनी रही, तो निकट भविष्य में उत्तराखण्ड भारत का सबसे बड़ा फार्मा क्लस्टर बन सकता है।
अवैध गतिविधियों पर सख्त रुख
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अधोमानक दवाओं के निर्माण या वितरण में लिप्त व्यक्तियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। विभागीय जांच जारी है और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ FIR दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।
उत्तराखण्ड: वैश्विक फार्मा मानचित्र पर उभरता सितारा
वर्तमान में उत्तराखण्ड की औषधि इकाइयों से देश के 15 से अधिक राज्यों और 20 से अधिक देशों को दवाओं की आपूर्ति की जा रही है। ये कंपनियां WHO-GMP, ISO और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन कर रही हैं।
सरकार का ध्यान न केवल उद्योग विस्तार पर है, बल्कि यह सुनिश्चित करने पर भी है कि यहां से उत्पादित दवाएं विश्व स्तरीय गुणवत्ता की हों।