आवारा (कुत्ता बिल्ली) ही नहीं बल्कि पालतु जानवर के काटने या खरोंच से भी रेबीज हो सकता है। पुरे देश में ऐसे मामले बीते सालों में तेजी से बढ़े हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग पालतु जानवर के काटने के बाद रेबीज का टीका लगाने के लिए अस्पताल पहुंचते है। पूरे देश में ऐसे मामले बीते वर्षों मे तेजी से बढ़े हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, 40 प्रतिशत लोगों में सबसे ज्यादा लोग पालतू जानवरों के काटने का शिकार हुए हैं। इनमें से भी 98 फीसदी से ज्यादा मामले कुत्तों के काटने तथा बाकी दो प्रतिशत बिल्ली- बंदर या किसी जंगली जानवर के काटने के थे। विभिन्न शोध और विशेषज्ञ इसकी पुष्टि करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक एशिया और अफ्रीका के साथ 150 से ज्यादा देशों में रेबीज खतरा है। विश्वभर में 70 हजार तो भारत में 20 हजार लोगों की हर साल इससे जान चली जाती है। इनमें भी 40 प्रतिशत से ज्यादा 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों की स्थिति बेहद नाजुक है। रेबीज के टीकाकरण की जानकारी न होने और कम संसाधनों के चलते हालात बिगड़ते हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बीएचयू वाराणसी के निदेशक डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता के मुताबिक, 40 प्रतिशत मामले पालतू या घरेलू जानवरों से जुड़े हैं।
ऐसे होती है लापरवाही
कुत्तों और बिल्ली के बच्चों को तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर कई टीके लगवाने होते हैं। साथ ही छह माह, एक साल और तीन साल में बूस्टर टीका भी लगवानी होती है, लेकिन जानवर पालने वाले अक्सर इसकी अनदेखी करते हैं।
मृत्युदर सौ फीसदी
रेबीज के लक्षण औसतन दो से तीन माह में दिखने लगते हैं। दुनिया में सिर्फ आठ लोग रेबीज के बाद बच पाए हैं। इनमें से सात को पहले ही वैक्सीन लगी थी और एक प्रतिरोधक क्षमता के कारण बच सका। एक बार रेबीज हुआ तो मौत तय है।