अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई H-1B वीज़ा पॉलिसी से बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है। नई व्यवस्था के तहत हर नए H-1B वीज़ा पर अब $100,000 (करीब 83 लाख रुपये) की भारी-भरकम फीस चुकानी होगी।
🔹 बैंक सबसे बड़े प्रभावित
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2025 में अमेरिका की टॉप 10 फाइनेंशियल कंपनियों को करीब 12,000 H-1B वीज़ा मिले थे। इनमें जेपी मॉर्गन सबसे आगे रहा, जिसे अकेले 2,440 वीज़ा मिले।
विशेषज्ञों का कहना है कि टेक कंपनियों की तुलना में बैंकों के लिए यह फीस ज्यादा बोझ साबित होगी क्योंकि टेक कंपनियां रिकॉर्ड मुनाफा कमा रही हैं, जबकि बैंकों की स्थिति अलग है।
🔹 एंट्री-लेवल हायरिंग पर रोक जैसी स्थिति
Prospect Rock Partners की मैनेजिंग पार्टनर Meridith Dennes ने कहा,
“एंट्री-लेवल एनालिस्ट और टेक वर्कर्स को H-1B वीज़ा पर हायर करना अब लगभग नामुमकिन हो जाएगा।”
🔹 ऑफशोरिंग की ओर शिफ्ट?
Morningstar DBRS के Tim O’Brien का मानना है कि अब बैंकों को टेक्नोलॉजी और क्वांट मॉडलिंग जैसी ज़रूरी स्किल्स वाले कर्मचारियों के लिए ऑफशोर लोकेशंस जैसे कनाडा की ओर रुख करना पड़ सकता है।
🔹 जेपी मॉर्गन का रिएक्शन
जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डिमोन ने भारतीय मीडिया से कहा कि यह फैसला सभी को अचानक चौंकाने वाला रहा। बैंक इस मुद्दे पर पॉलिसी मेकर्स से बातचीत करेगा।
🔹 वैकल्पिक रास्ते तलाश रही कंपनियां
कंसल्टेंसी फर्म्स और बिग-4 कंपनियां अब ग्रीन कार्ड स्पॉन्सरशिप तेज करने और दूसरे वीज़ा विकल्पों पर विचार कर रही हैं।
👉 एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कदम अमेरिकी कंपनियों की टैलेंट पाइपलाइन को झटका देगा और वैश्विक वित्तीय कंपनियां अपनी हायरिंग स्ट्रेटजी बदलने को मजबूर होंगी।