“बांड भरकर घर के रहे न घाट के” उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग की रणनीतिक चूक का खामियाजा भुगत रहे हैं 50 से अधिक डॉक्टर 

देहरादून। उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के उद्देश्य से सरकार ने वर्षों पहले एक अहम निर्णय लेते हुए मेडिकल छात्रों से बॉन्ड साइन करवाया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि सरकारी खर्च पर एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्रों को पढ़ाई पूरी करने के बाद पांच साल तक दुर्गम और दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में सेवा देना अनिवार्य किया जाय ताकि पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी पूरी जो जाय। इससे जहां एक ओर डॉक्टरों की भारी कमी से राहत मिली, वहीं दूसरी ओर अब यह योजना खुद उन डॉक्टरों के लिए चिंता का विषय बन गई है जिन्होंने ईमानदारी से अपने पांच साल की सेवा पहाड़ी दुर्गम इलाकों में पूरी कर ली है।

 

राज्य में ऐसे 50 से अधिक एमबीबीएस डॉक्टर हैं जिन्होंने पांच साल की कठिन सेवा पूरी की है। उन्होंने दुर्गम क्षेत्रों में संसाधनों की कमी, खराब सड़क संपर्क, और सीमित सुविधाओं के बावजूद मरीजों की सेवा की है। अब जब इन डॉक्टरों ने बॉन्ड की शर्तें पूरी कर ली हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि आगे क्या? उन्हें राज्य में स्थायी नियुक्ति या विशेषज्ञता की कोई स्पष्ट दिशा नहीं मिल रही है।डॉक्टरों का कहना है कि सरकार ने जब उनसे बॉन्ड भरवाया था, तब यह आश्वासन भी दिया गया था कि सेवा पूरी करने के बाद उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन अब स्थिति यह है कि सरकार की नीति विशेषज्ञ डॉक्टरों की ओर झुकती दिख रही है। विभिन्न अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में एमबीबीएस डॉक्टरों की जगह विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में बॉन्ड पूरा कर चुके सामान्य एमबीबीएस डॉक्टर न तो नए पदों के लिए योग्य ठहराए जा रहे हैं, न ही उन्हें आगे के लिए कोई ठोस मार्गदर्शन मिल रहा है।

 

उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ जैसे दुर्गम जिलों में सेवाएं दे चुके डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने कई बार सरकार से यह आग्रह किया कि सेवा पूरी करने के बाद उनके लिए क्या नीति होगी, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है। डॉक्टरों की मांग है कि सेवा पूरी करने के बाद उन्हें स्थायी नियुक्ति दी जाए या पीजी (पोस्ट ग्रेजुएशन) में सीटों पर आरक्षण या प्राथमिकता दी जाए, ताकि वे भी अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत हो सकें।दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि नीति निर्धारण का कार्य सरकार के स्तर पर हो रहा है और जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। हालांकि, विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने नई नियुक्तियों में विशेषज्ञों को वरीयता देने की बात कही है।इस असमंजस की स्थिति से राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि यदि एमबीबीएस डॉक्टरों को भविष्य की सुरक्षा नहीं मिली तो आने वाले वर्षों में इस सेवा के प्रति रुझान कम हो सकता है। ऐसे में जरूरत है कि सरकार पारदर्शी और दीर्घकालिक नीति बनाकर न केवल बॉन्डधारी डॉक्टरों का भविष्य सुनिश्चित करे, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता भी बनाए रखे।

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