Banbhoolpura Violence: हाई कोर्ट ने आठ फरवरी को बनभूलपुरा के मलिक का बगीचा क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के विरोध में हिंसा व आगजनी करने की आरोपित छह महिलाओं समेत 50 लोगों की जमानत मंजूर कर ली है।
नैनीताल । पुलिस की ढिलाई के कारण बनभूलपुरा हिंसा के आरोपितों को हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी। मामला हल्द्वानी के बहुचर्चित बनभूलपूरा हिंसा से जुड़ा है।
तय समय सीमा से अधिक समय लगाने के बाद भी नैनीताल पुलिस बनभूलपुरा दंगे के पचास आरोपियों के आरोप पत्र पेश नहीं कर पायी। इसको आधार बनाते हुए नैनीताल उच्च न्यायालय ने हिंसा के पचास आरोपितों को जमानत दे दी । इसी आधार को पहले निचली अदालत खारिज कर चुकी है। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को भी निरस्त कर दिया है।
हल्द्वानी, बनभूलपुरा के जिस दंगे के बाद @pushkardhami सरकार ने लोक एवं निजी संपत्ति क्षतिपूर्ति क़ानून बनाया, उस दंगे के 50 आरोपियों को हाई कोर्ट नैनीताल ने इसलिए जमानत दे दी क्योंकि प्रदेश पुलिस 90 दिन के भीतर आरोप पत्र दाखिल नहीं कर सकी। ये मित्र पुलिस की कार्यप्रणाली पर बड़ा… pic.twitter.com/VYlmCKOj3I
— Ajit Singh Rathi (@AjitSinghRathi) August 29, 2024
गौरतलब है कि इस मामले में पुलिस को आरोप पत्र पेश करने के लिए अतिरिक्त समय दिया गया था।
बीते शनिवार को वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की संयुक्त खंडपीठ ने सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था। बुधवार को फैसला सुनाया Gया।
अपने निर्णय में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें पुलिस द्वारा 90 दिन बीत जाने के बाद भी कोर्ट में आरोप पत्र पेश नहीं किया। आरोप पत्र पेश करने के लिए और समय भी दिया गया। गौरतलब है कि दंगे के आरोपित मुज्जमिल सहित 49 अन्य आरोपितों ने उच्च न्यायालय में डिफॉल्ट जमानत प्रार्थनापत्र पेश किया था।
इसमें कहा गया कि पुलिस ने उनके खिलाफ 90 दिन के अंदर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया है और न ही रिमांड बढ़ाने के लिए कोई स्पष्ट कारण बताया गया। कोर्ट ने उनकी रिमांड बढ़ा दी। इसके साथ ही उनकी डिफॉल्ट बेल खारिज कर दी।
मामले में सरकारी पक्ष की ओर से कहा गया कि पुलिस के पास पर्याप्त आधार और कारण हैं। इसके साथ ही अदालत के पास रिमांड बढ़ाने का अधिकार है।
नियमानुसार ही आरोपितों की रिमांड बढ़ाई गयी है। सुनवाई पर आरोपितों की ओर से कहा गया कि जो समय बढ़ाया गया है यह संविधान के अनुच्छेद 21का उल्लंघन है। पुलिस बिना किसी कारण के चाहे उनके ऊपर कितने बड़े आरोप क्यों नहीं लगे हो उन्हें जेल में बंद नहीं रख सकती।
अभी तक आरोप पत्र पेश नहीं हुआ इसलिए उनका अधिकार है कि उनको जमानत पर रिहा किया जाय।
(साभार)