नीम करौली बाबा या नीब करौरी बाबा या महाराजजी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान[peacock term] संतों में होती है।इनका जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर जिला फ़िरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश है जो कि हिरन गाँव से 500 मीटर दूरी पर है। कैंची, नैनीताल, भुवाली से ७ कि॰मी॰ की दूरी पर भुवालीगाड के बायीं ओर स्थित है। इस धाम को कैंची मंदिर , नीम करौली धाम और नीम करौली आश्रम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बाबा नीम करौली महाराज जी ने बनवाया है, जो चमत्कारी बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। बाबा नीम करौली महाराज जी केवल उत्तराखंड में ही चमत्कारी बाबा के नाम से नहीं जाने जाते हैं, बल्कि इनकी चमत्कारी की कथाएं विदेशों तक फैली हुई है। कैंची मन्दिर में प्रतिवर्ष १५ जून को वार्षिक समारोह मानाया जाता है। उस दिन यहाँ बाबा के भक्तों की विशाल भीड़ लगी रहती है। महाराज जी इस युग के भारतीय दिव्य पुरुषों में से हैं। श्री नीम करोली बाबा को हम महाराज जी कहते है| ऐसा माना जाता है कि जब तक महाराजजी 17 वर्ष के थे| तब वह सबकुछ जानते थे| जो आज के युग मे समझ मे नहीं आ सकता| उनको इतनी छोटी सी आयु मे सारा ज्ञान था| भगवान के बारे में संपूर्ण ज्ञान था| बताते है, भगवान श्री हनुमान उनके गुरु है| गोस्वामी तुलसी दास जी जैसे लोगों की परंपरा में नींव करौरी बाबा जी ही ऐसे थे, जिन्होंने रामभक्त श्री हनुमान जी महाराज के प्रत्यक्ष दर्शन किए थे | नीम करौली बाबा जी अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। बाबा नीम करौली जी महाज्ञानी और अन्तर्यामी होने के बावजूद भी घमंड नहीं था और वह साधारण जीवन जीते थे! नीम करौली बाबा जी का मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म स्थान अकबरपुर (उत्तर प्रदेश) में सन 1900 के आस पास हुआ था। नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रशाद शर्मा था। अकबरपुर के hirangaon गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। 11 वर्ष कि उम्र में लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था। बाबा जी ने जल्दी ही घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे। एक दिन उनके पिता उनसे मिले और गृहस्थ जीवन का पालन करने को कहा। पिता के आदेश को मानते हुए नीम करौली बाबा घर वापस लौट आये और दोबारा गृहस्थ जीवन शुरू कर दिया। नीम करौली बाबा जी गृहस्थ जीवन के साथ- साथ धार्मिक और सामाजिक कामों में सहायता करते थे। नीम करौली बाबा को दो बेटे और एक बेटी हुई।